Monday, August 8, 2011

Islam Dharam (Hindi)


इस्लाम

इस्लाम धर्म (الإسلام) ईसाई धर्म के बाद अनुयाइयों के आधार पर दुनिया का दूसरा सब से बड़ा धर्म है। इस्लाम शब्द अरबी भाषा का शब्द है जिसका मूल शब्द सल्लमा है जिस की दो परिभाषाएं हैं () अमन और शांति () आत्मसमर्पण।[]
ईस्लाम एकेश्वरवाद को मानता है। इसके अनुयायियों का प्रमुख विश्वास है कि ईश्वर सिर्फ़ एक है और पूरी सृष्टि में सिर्फ़ वह ही महिमा (इबादत) के लायक है, और सृष्टि में हर चीज़, ज़िंदा और बेजान, दृश्य और अदृश्य उसकी इच्छा के सामने आत्मसमर्पित और शांत है। इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक का नाम क़ुरआन है जिसका हिंदी में मतलब सस्वर पाठ है। इसके अनुयायियों को अरबी में मुस्लिम कहा जाता है, जिसका बहुवचन मुसलमान होता है। मुसलमान यह विश्वास रखते है कि क़ुरआन जिब्राईल (ईसाईयत में Gabriel) नामक एक फ़रिश्ते के द्वारा, मुहम्मद साहब को ७वीं सदी के अरब में, लगभग २३ साल में याद-कंठस् कराया गया था। मुसलमान इस्लाम को कोई नया धर्म नहीं मानते। उनके अनुसार ईश्वर ने मुहम्म्द साहब से पहले भी धरती पर कई दूत भेजे हैं, जिनमें इब्राहीम, मूसा और ईसा शामिल हैं। मुसलमानों के अनुसार मूसा और ईसा के कई उपदेशों को लोगों ने विकृत कर दिया। अधिकतम मुसलमानों के लिये मुहम्मद साहब ईश्वर के अन्तिम दूत थे और क़ुरआन मनुष्य जाति के लिये अन्तिम संदेश है।[]
इस्लामी धर्म मत
ईश्वर की एकता
मुसलमान एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वो अल्लाह (फ़ारसी: ख़ुदा) कहते हैं। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है एक। इस्लाम में इश्वर को मानव की समझ से ऊपर समझा जाता है। मुसलमानों से इश्वर की कल्पना करने के बजाय उसकी प्रार्थना और जय जयकार करने को कहा गया है। मुसलमानों के अनुसार इश्वर अद्वितीय हैः उसके जैसा और कोई नहीं। इस्लाम में ईश्वर की एक विलक्षण अवधारणा पर ज़ोर दिया गया है। साथ में यह भी माना जाता कि उसकी पूरी कल्पना मनुष्य के बस में नहीं है।
कहो: है ईश्वर एक और अनुपम।
है ईश्वर सनातन, हमेशा से हमेशा तक जीने वाला।
उसकी कोई औलाद है वह खुद किसी की औलाद है।
और उस जैसा कोई और नहीं॥
(
कुरान, सूरत ११२, आयते - )
नबी और रसूल
इस्लाम के अनुसार ईश्वर ने धरती पर मनुष्य के मार्गदर्शन के लिये समय समय पर किसी व्यक्ति को अपना दूत बनाया। यह दूत भी मनुष्य जाति में से होते थे और ईश्वर की ओर लोगों को बुलाते थे। ईश्वर इन दूतों से विभिन्न रूपों से समपर्क रखते थे। इन को इस्लाम में नबी कहते हैं। जिन नबियों को इश्वर ने स्वयं शास्त्र या धर्म पुस्तकें प्रदान कीं उन्हें रसूल कहते हैं। मुहम्मद साहिब भी इसी कड़ी का हिस्सा थे। उनको जो धार्मिक पुस्तक प्रदान की गयी उसका नाम कुरान है। कुरान में ईश्वर के २५ अन्य नबियों का वर्णन है। स्वयं कुरान के अनुसार ईश्वर ने इन नबियों के अलावा धरती पर और भी कई नबी भेजे हैं जिनका वर्णन कुरान में नहीं है।
सभी मुसलमान ईश्वर द्वारा भेजे गये सभी नबियों की वैधता स्वींकार करते हैं और अधिकतम मुसलमान मुहम्मद साहब को ईशवर का अन्तिम नबी मानते हैं। अहमदिय्या समुदाय के लोग मुहम्मद साहब को अन्तिम नबी नहीं मानते हैं और स्वयं को इस्लाम का अनुयायी भी कहते हैं। भारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसार उनको भारत में मुसलमान माना जाता है।[] कई अन्य प्रतिष्ठित मुसलमान विद्वान समय समय पर पहले भी मुहम्मद साहब के अन्तिम नबी होने पर सवाल उठा चुके हैं।[][][]
धर्म पुस्तकें
मुसलमानों के लिये ईश्वर द्वारा रसूलों को प्रदान की गयी सभी धार्मिक पुस्तकें वैध हैं। मुसलमनों के अनुसार कुरान ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान की गयी अन्तिम धार्मिक पुस्तक है। कुरान में चार और पुस्तकों की चर्चा है:
·      सहूफ़ इब्राहीमी जो कि इब्राहीम को प्रदान की गयीं। यह अब लुप्त हो चुकी है।
·      तौरात जो कि मूसा को प्रदान की गयी।
·      ज़बूर जो कि दाउद और कुछ अन्य रसूलों को प्रदान किये गये शास्त्रों का संगठन है।
·      इंजील जो कि ईसा को प्रदान की गयी।
मुसलमान यह समझते हैं कि ईसाइयों और यहूदियों ने अपनी पुस्तकों के संदशों में बदलाव कर दिये हैं। वह इन चारों के अलावा अन्य धार्मिक पुसतकों की होने की सम्भावना से इन्कार नहीं करते हैं।
फरिश्ते
मुसलमान फरिश्तों (अरबी में मलाइका) के अस्तित्व को मानते हैं। उनके अनुसार फरिश्ते स्वयं कोई इच्छाश्क्ति नहीं रखते और केवल ईश्वर की आज्ञा का पालन ही करते हैं। वह खालिस रोशनी से बनीं हूई अमूर्त और निर्दोष हस्तियों हैं जो कि मर्द हैं औरत बल्कि इंसान से हर लिहाज़ से अलग हैं। हालांकि अगणनीय फरिश्ते है पर चार फरिश्ते कुरान में प्रभाव रखते हैं:
·      जिब्राईल (Gabriel) जो नबीयों और रसूलों को इश्वर का संदेशा ला कर देता है।
·      इज़्राईल (Azrael) जो इश्वर के समादेश से मौत का फ़रिश्ता जो इन्सान की आत्मा ले जाता है।
·      मीकाईल (Michael) जो इश्वर के समादेश पर मौसम बदलनेवाला फ़रिश्ता।
·      इस्राफ़ील (Raphael) जो इश्वर के समादेश पर कयामत के दिन की शुरूवात पर एक आवाज़ देगा।
कयामत
मध्य एशिया के अन्य धर्मों की तरह इस्लाम में भी कयामत का दिन माना जाता है। इसके अनुसार ईशवर एक दिन संसार को समाप्त करेगा। यह दिन कब आयेगा इसकी सही जानकारी केवल ईश्वर को ही है। इसे मुसलमान कयामत का दिन कहते हैं। इस्लाम में शारीरिक रूप से सभी मरे हुए लोगों का उस दिन जी उठने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। उस दिन हर इनसान को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का फल दिया जाएगा। इस्लाम में हिन्दू मत की तरह समय के परिपत्र होने की अवधारणा नहीं है। कयामत के दिन के बाद दोबारा संसार की रचना नहीं होगी।
तक़दीर
मुसलमान तक़दीर को मानते हैं। तक़दीर का मतलब इनके लिये यह है कि ईश्वर बीते हुए समय, वर्तमान और भविष्य के बारे में सब जानता है। कोई भी चीज़ उसकी अनुमति के बिना नहीं हो सकती है। मनुष्य को अपनी मन मरज़ी से जीने की आज़ादी तो है पर इसकी अनुमति भी ईश्वर ही के द्वारा उसे दी गयी है। ईस्लाम के अनुसार मनुष्य अपने कुकर्मों के लिये स्वयं जिम्मेदार इस लिये है क्योंकि उन्हें करने या करने का निर्णय ईश्वर मनुष्य को स्वयं ही लेने देता है। उसके कुकर्मों का भी पूर्व ज्ञान ईश्वर को होता है।
मुसलमानों के कर्तव्य और शरियत
इस्लाम के स्तंभ
इस्लाम के दो प्रमुख वर्ग हैं, शिया और सुन्नी. दोनों के अपने अपने इस्लामी नियम हैं लेकिन बुनयादी सिद्धांत मिलते जुलते हैं। सुन्नी इस्लाम में हर मुसलमान के आवश्यक कर्तव्य होते हैं जिन्हें इस्लाम के स्तंभ भी कहा जाता है। शिया इस्लाम में थोड़े अलग सिद्धांतों को स्तंभ कहा जाता है। सुन्नी इस्लाम के स्तंभ हैं-
·      शहादाह- इस का शाब्दिक अर्थ है गवाही देना। इस्लाम में इसका अर्थ मे इस अरबी घोषणा से हैः
अरबी:ﻻ ﺍﻟﻪ ﺍﻻﺍ ﷲ ﻣﺤﻤﺪﺍ ﻟﺮﺳﻮﻝﺍ ﷲ
हिंदी: ईश्वर के सिवा और कोई पूजनीय (पूजा के योग्य) नहीं और मुहम्मद ईश्वर के रसूल हैं।
इस घोषणा से हर मुसलमान ईश्वर की एकेश्वरवादिता और मुहम्मद साहब के रसूल होने के अपने यक़ीन की गवाही देता है। यह इस्लाम का सबसे अहम सिद्धांत है। हर मुसलमान के लिये अनिवार्य है कि वह इसे स्वींकारे। एक गैर मुस्लिम को इस्लाम कबूल करने के लिये केवल इसे स्वींकार कर लेना काफी है।
·      सलात- इसे हिन्दुस्तानी में नमाज़ भी कहते हैं। यह एक प्रकार की प्रार्थना है जो अरबी भाषा में एक विशेष नियम से पढ़ी जाती है। इस्लाम के अनुसार नमाज़ ईश्वर के प्रति मनुष्य की कृतज्ञता दर्शाती है। यह मक्का की ओर मुँह कर के पढ़ी जाती है। हर मुसलमान के लिये दिन में बार नमाज़ें पढ़ना अनिवार्य है। मजबूरी और बीमारी की हालत में इसे टाला जा सकता है और बाद में समय मिलने पर छूटी हूई नमाज़ें पढ़ी जा सकती हैं।
·      ज़कात- यह एक सालाना दान है जो कि हर आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमान को गरीबों को देना अनिवार्य है। अधिकतम मुसलमान अपनी सालाना आय का .% ज़कात में देते हैं। यह एक धार्मिक कर्तव्य इस लिये है क्योंकि इस्लाम के अनुसार मनुष्य की पूंजी असल में ईश्वर की अमानत है।
·      सौम- इस के अनुसार इस्लामी कैलेण्डर के नवें महीने में सभी सक्षम मुसलमानों के लिये सूर्योदय से सूर्यास्त तक वृत रख्नना अनिवार्य है। इस वृत को रोज़ा भी कहते हैं। रोज़े में हर प्रकार का खाना-पीना वर्जित है। अन्य व्यर्थ कर्मों से भी अपने आप को दूर रखा जाता है। यौनिक गतिविधियाँ भी वर्जित हैं। मजबूरी में रोज़ा रखना ज़रूरी नहीं होता। रोज़ा रखने के कई उद्देश्य हैं जिन में से दो प्रमुख उद्देश्य यह हैं कि दुनिया की बाक़ी आकर्षणों से ध्यान हटा कर ईश्वर से नज़दीकी महसूस की जाए और दूसरा यह कि ग़रीबों, फ़कीरों और भूखों की समस्याओं और मुश्किलों का एहसास हो।
·      हज- हज उस धार्मिक तीर्थ यात्रा का नाम है जो इस्लामी कैलेण्डर के १२वें महीने में मक्का के शहर में जाकर की जाती है। हर समर्पित मुसलमान (जो ह्ज का खर्च‍‍ उठा सकता हो और मजबूर हो) के लिये जीवन में एक बार इसे करना अनिवार्य है।
शरियत और इस्लामी न्यायशास्त्र
मुसलमानों के लिये इस्लाम जीवन के हर पहलू पर अपना असर रखता है। इस्लामी सिद्धांत मुसलमानों के घरेलू जीवन, उनके राजनैतिक या आर्थिक जीवन, मुसलमान राज्यों की विदेश निति इत्यादि पर प्रभाव डालते हैं। शरियत उस समुच्चय निति को कहते हैं जो इस्लामी कानूनी परंपराओं और इस्लामी व्यक्तिगत और नैतिक आचरणों पर आधारित होती है। शरियत की निति को नींव बना कर न्यायशास्त्र के अध्य्यन को फिक़ह कहते हैं। फिक़ह के मामले में इस्लामी विद्वानों की अलग अलग व्याख्याओं के कारण इस्लाम में न्यायशास्त्र कई भागों में बट गया और कई अलग अलग न्यायशास्त्र से संबंधित विचारधारओं का जन्म हुआ। इन्हें मज़हब कहते हैं। सुन्नी इस्लाम में प्रमुख मज़हब हैं-
·      हनफी मज़हब- इसके अनुयायी दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में हैं।
·      मालिकी मज़हब-इसके अनुयायी पश्चिम अफ्रीका और अरब के कुछ हिस्सों में हैं।
·      शाफ्यी मज़हब-इसके अनुयायी अफ्रीका पूर्वी अफ्रीका, अरब के कुछ हिस्सों और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं।
·      हंबली मज़हब- इसके अनुयायी सऊदी अरब में हैं।
अधिकतम मुसलमानों का मानना है कि चारों मज़हब बुनियादी तौर पर सही हैं और इनमें जो मतभेद हैं वह न्यायशास्त्र की बारीक व्याख्याओं को लेकर है।
इतिहास
मुहम्मद साहब
मुहम्मद साहब(५७०-६३२) को मक्का की पहाड़ियों में परम ज्ञान ६१० के आसपास प्राप्त हुआ। जब उन्होंने उपदेश देना आरंभ किया तब मक्का के समृद्ध लोगों ने इसे अपनी सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था पर खतरा समझा और उनका विरोध होने लगे। अंत में ६२२ में उन्हें अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना के लिए कूच करना पड़ा। इस यात्रा को हिजरा कहा जाता है और यहीं से इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत होती है। मदीना के लोगों की ज़िंदगी आपसी लड़ाईयों से परेशान सी थी और मुहम्मद साहब के संदेशों ने उन्हें वहाँ बहुत लोकप्रिय बना दिया। ६३० में मुहम्मद साहब ने अपने अनुयायियों के साथ एक संधि कि उल्लंघना होने के कारण मक्का पर चढ़ाई कर दी। मक्कावासियों ने आत्मसमर्पण करके इस्लाम कबूल कर लिया। मक्का में स्थित काबा को इस्लाम का पवित्र स्थल घोषित कर दिया गया ६३२ में मुहम्मद साहब का देहांत हो गया। पर उनकी मृत्यु तक इस्लाम के प्रभाव से अरब के सारे कबीले एक राजनीतिक और सामाजिक सभ्यता का हिस्सा बन गये थे। इस के बाद इस्लाम में खिलाफत का दौर शुरु हुआ।
इस्लाम का स्वर्ण युग (७५०-१२५८)
उम्मयद वंश ७० साल तक सत्ता में रहा और इस दौरान उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण यूरोप, सिन्ध और मध्य एशिया के कई हिस्सों पर उनका कब्ज़ा हो गया। उम्मयद वंश के बाद अब्बासी वंश ७५० में सत्ता में आया। शिया और अजमी मुसलमानों ने (वह मुसलमान जो कि अरब नहीं थे) अब्बासियों को उम्मयद वंश के खिलाफ विद्रोह करने में बहुत सहायता की। उम्मयद वंश की एक शाखा दक्षिण स्पेन और कुछ और क्षेत्रों पर सिमट कर रह गयी। केवल एक इस्लामी सम्राज्य की धारणा अब समाप्त होने लगी।
अब्बासियों के राज में इस्लाम का स्वर्ण युग शुरु हुआ। अब्बासी खलीफा ज्ञान को बहुत महत्त्व देते थे। मुस्लिम दुनिया बहुत तेज़ी से विशव का बौद्धिक केन्द्र बनने लगी। कई विद्वानों ने प्राचीन युनान, भारत, चीन और फ़ारसी सभय्ताओं की साहित्य, दर्शनशास्र, विज्ञान, गणित इत्यादी से संबंधित पुस्तकों का अध्ययन किया और उनका अरबी में अनुवाद किया। विशेषज्ञों का मानना है कि इस के कारण बहुत बड़ा ज्ञानकोष इतिहास के पन्नों में खोने से रह गया।[] मुस्लिम विद्वानों ने सिर्फ अनुवाद ही नहीं किया। उन्होंने इन सभी विषयों में अपनी छाप भी छोड़ी।
चिकित्सा विज्ञान में शरीर रचना और रोगों से संबंधित कई नई खोजें हूईं जैसे कि खसरा और चेचक के बीच में जो फर्क है उसे समझा गया। इबने सीना (९८०-१०३७) ने चिकित्सा विज्ञान से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं जो कि आगे जा कर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का आधार बनीं। इस लिये इबने सीना को आधुनिक चिकित्सा का पिता भी कहा जाता है।[][] इसी तरह से अल हैथाम को प्रकाशिकी विज्ञान का पिता और अबु मूसा जबीर को रसायन शास्त्र का पिता भी कहा जाता है।[१०][११] अल ख्वारिज़्मी की किताब किताब-अल-जबर-वल-मुक़ाबला से ही बीजगणित को उसका अंग्रेजी नाम मिला। अल ख्वारिज़्मी को बीजगणित की पिता कहा जाता है।[१२]
इस्लामी दर्शनशास्त्र में प्राचीन युनानी सभय्ता के दर्शनशास्र को इस्लामी रंग से विकसित किया गया। इबने सीना ने नवप्लेटोवाद, अरस्तुवाद और इस्लामी धर्मशास्त्र को जोड़ कर सिद्धांतों की एक नई प्रणाली की रचना की। इससे दर्शनशास्र में एक नई लहर पैदा हूई जिसे इबनसीनावाद कहते हैं। इसी तरह इबन रशुद ने अरस्तू के सिद्धांतों को इस्लामी सिद्धांतों से जोड़ कर इबनरशुवाद को जन्म दिया। द्वंद्ववाद की मदद से इस्लामी धर्मशास्त्र का अध्ययन करने की कला को विकसित किया गया. इसे कलाम कहते हैं। मुहम्मद साहब के उद्धरण, गतिविधियां इत्यादि के मतलब खोजना और उनसे कानून बनाना स्वयँ एक विषय बन गया। सुन्नी इस्लाम में इससे विद्वानों के बीच मतभेद हुआ और सुन्नी इस्लाम कानूनी मामलों में हिस्सों में बट गया।
राजनैतिक तौर पर अब्बासी सम्राज्य धीरे धीरे कमज़ोर पड़ता गया। अफ्रीका में कई मुस्लिम प्रदेशों ने ८५० तक अपने आप को लगभग स्वतंत्र कर लिया। ईरान में भी यही हाल हो गया। सिर्फ कहने को यह प्रदेश अब्बासियों के अधीन थे। महमूद ग़ज़नी (९७१-१०३०) ने अपने आप को तो सुल्तान भी घोषित कर दिया। सल्जूक तुरकों ने अब्बासियों की सेना शक्ति नष्ट करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मध्य एशिया और ईरान के कई प्रदेशों पर राज किया। हालांकि यह सभी राज्य आपस में युद्ध भी करते थे पर एक ही इस्लामी संस्कृति होने के कारण आम लोगों में बुनियादी संपर्क अभी भी नहीं टूटा था। इस का कृषिविज्ञान पर बहुत असर पड़ा। कई फसलों को नई जगह ले जाकर बोया गया। यह मुस्लिम कृषि क्रांति कहलाती है।
विभिन्न मुस्लिम सम्राज्यों की रचना और आधुनिक इस्लाम
फातिमिद वंश (९०९-११७१) जो कि शिया था ने उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों पर कब्ज़ा कर के अपनी स्वतंत्र खिलाफत की स्थापना की। (हालांकि इस खिलाफत को अधिकतम मुसल्मान आज अवैध मानते हैं।) मिस्र में गुलाम सैनिकों से बने ममलूक वंश ने १२५० में सत्ता हासिल कर ली। मंगोलों ने जब १२५८ में अब्बासियों को बग़दाद में हरा दिया तब अब्बासी खलीफा एक नाम निहाद हस्ती की तरह मिस्र के ममलूक सम्राज्य की शरण में चले गये। एशिया में मंगोलों ने कई सम्राज्यों पर कब्ज़ा कर लिया और बोद्ध धर्म छोड़ कर इस्लाम कबूल कर लिया। मुस्लिम सम्राज्यों और इसाईयों के बीच में भी अब टकराव बढ़ने लगा। अय्यूबिद वंश के सलादीन ने ११८७ में येरुशलाईम को, जो पहली सलेबी जंग (१०९६-१०९९) में इसाईयों के पास गया था, वापस जीत लिया। १३वीं और १४वीं सदी से उस्मानी साम्राज्य(१२९९-१९२४) का असर बढ़ने लगा। उसने दक्षिणी और पूर्वी यूरोप के कई प्रदेशों को और उत्तरी अफ्रीका को अपना अधीन कर लिया। खिलाफत अब वैध रूप से उस्मानी वंश की होने लगी। ईरान में शिया सफवी वंश(१५०१-१७२२) और भारत में दिल्ली सुल्तानों (१२०६-१५२७) और बाद में मुग़ल साम्राज्य(१५२६-१८५७) की हुकूमत हो गयी।
नवीं सदी से ही इस्लाम में अब एक धार्मिक रहस्यवाद की भावना का विकास होने लगा था जिसे सूफी मत कहते हैं। ग़ज़ाली(१०५८-११११) ने सूफी मत के पष में और दर्शनशास्त्र की निरर्थकता के बारे में कुछ ऐसे तर्क दिये थे कि दर्शनशास्त्र का ज़ोर कम होने लगा। सूफी काव्यात्मकता की प्रणाली का अब जन्म हुआ। रूमी (१२०७-१२७३) की मसनवी इस का प्रमुख उदाहरण है। सूफियों के कारण कई मुसलमान धर्म की ओर वापस आकर्षित होने लगे। अन्य धर्मों के कई लोगों ने भी इस्लाम कबूल कर लिया। भारत और इंडोनेशिया में सूफियों का बहुत प्रभाव हुआ। मोइनुदीन चिश्ती, बाबा फरीद, निज़ामुदीन जैसे भारतिय सूफी संत इसी कड़ी का हिस्सा थे।
१९२४ में तुर्की के पहले प्रथम विश्वयुद्ध में हार के बाद उस्मानी साम्राज्य समाप्त हो गया और खिलाफत का अंत हो गया। मुसल्मानों के अन्य देशों में प्रवास के कारण युरोप और अमरीका में भी इस्लाम फैल गया है। अरब दैशों में तेल के उत्पादन के कारण उनकी अर्थव्यवस्था बहुत तेज़ी से सुधर गयी। १९वीं और २०वीं सदी में इस्लाम में कई पुनर्जागरण आंदोलन हुए। इन में से सलाफी और दियोबंदी मुख्य हैं। एक पश्चिम विरोधी भावना का भी विकास हुआ जिससे कुछ मुसलमान कट्टरपंथ की तरफ आकर्षित होने लगे।
समुदाय
जनसांख्यिकी
दुनिया में मुस्लिम जनसंख्या।
विश्व में आज लगभग . अरब (या फिर १३० करोड़) से . अरब (१८० करोड़) मुसलमान हैं। इन्में से लगभग ८५% सुन्नी और लगभग १५% शिया हैं। सुन्नी और शिया के अलावा इस्लाम में कुछ अन्य वर्ग भी हैं परन्तु इन का प्रभाव बहुत कम है। सबसे अधिक मुसलमान दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया के देशों में रहते हैं। मध्य पूर्व, अफ़्रीका और युरोप में भी मुसलमानों के बहुत समुदाय रहते हैं। विश्व में लगभग ४८ देश ऐसे हैं जहाँ मुसलमान बहुमत में हैं। विश्व में कई देश ऐसे भी हैं जहाँ की मुसलमान जनसंख्या के बारे में कोई विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध नहीं है।
मस्जिद
मुसलमानों के उपासनास्थल को मस्जिद कहते हैं। मस्जिद इस्लाम में केवल ईश्वर की प्रार्थना का ही केंद्र नहीं होता है बल्की यहाँ पर मुस्लिम समुदाय के लोग विचारों का आदान प्रदान और अध्ययन भी करते हैं। मस्जिदों में अक्सर इस्लामी वास्तुकला के कई अद्भुत उदाहरण देखने को मिलते हैं। विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद मक्का की मस्जिद अल हराम है। मुसलमानों का पवित्र स्थल काबा इसी मस्जिद में है। मदीना की मस्जिद अल नबवी और येरुशलाईम की मस्जिद अक़सा भी इस्लाम में महत्वपूर्ण हैं।
पारिवारिक और सामाजिक जीवन
मुसलमानों का पारिवारिक और सामाजिक जीवन इस्लामी कानूनों और इस्लामी प्रथाओं से प्रभावित होता है। विवाह एक प्रकार का कानूनी और सामाजिक अनुबंध होता है जिसकी वैधता केवल पुरुष और स्त्री की मर्ज़ी और गवाहों से निर्धारित होती है (शिया वर्ग में केवल गवाह चाहिये होता है) इस्लामी कानून स्त्रियों को भी पुर्षों की तरह विरासत में हिस्सा देते हैं।(हालांकि उनका हिस्सा आम तौर से पुर्षों का आधा होता है।)
इस्लाम के दो महत्वपूर्ण त्यौहार ईद उल फितर और ईद-उल-अज़्हा हैं। रमज़ान का महीना (जो कि इस्लामी कैलेण्डर का नवाँ महीना होता है) बहुत पवित्र समझा जाता है। अपनी इस्लामी पहचान दिखाने के लिये मुसलमान अपने बच्चों का नाम अक्सर अरबी भाषा से लेते हैं। इसी कारण वह दाढ़ी भी रखते हैं। इस्लाम में कपड़े पहनते समय लाज और शीलता रखने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। इस लिये कुछ स्त्रियाँ अजनबी पुर्षों से पर्दा करती हैं।

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